Sunday, December 6, 2009

विरह


दिल की फ़रयाद सिर्फ़ इतनी है, कि मरने से पहले उन्हे देख लें।,
विरह कि तपिश मे खुद जलें,और उनकी यादों को लम्हों मे समेट लें॥

वो मुझे शायद भुला दें, लेकिन उनकी यादें ही काफ़ी है मेरे जीने के लिये।
उनके आने कि आस भी शायद कम पर जाये जिन्दगी को आजमाने के लिये ॥

सावन की बरसात में उनका भींगना अब गम का घरौंदा बनाती है ।
अब तो धूप में बनी अपनी परछाई भी मुझे खूब डराती है ॥

मन्जिलें क्या है, रास्ता क्या है दूर तलक वीराना है ।
उनकी याद में मेरे अल्फ़ाजों का ये छॊटा सा फ़साना है ॥

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