Friday, December 11, 2009

एक ख्वाब ?








वो जिन्दगी ही क्या, जिसका कोई वजूद ना हो।

वो आशियाना ही क्या, जो आंधियों मे मह्फ़ूज़ ना हो॥

गम के आंधियों में, बिखर जाते हैं रेत के घरौंदे।
वो जाम ही क्या जिसके पीने में बदनाम पैमाना ना हो॥

हंगामा वाजिब है ,लेकिन थोडी सी पी लेने दो ।
ए मौत तुम कल आना ,आज की शाम जी लेने दो॥

चौंककर नींद से यकायक, उठकर मैं बैठ जाता हूं।
जब ख्वाबों में कभी, खुद को इतना बेचैन पाता हूं॥

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