Thursday, April 22, 2010

रिश्तों की पहचान

उनके खत की सादगी में खुद को अकेला पा रहा था।

स्याह में संलिप्त होकर भी खुद को मैं तन्हा पा रहा था॥


कभी देखा था तागे बुनने में गांठ नहीं आती थी।

रिश्तों में आयी गांठ को मैं मिटा रहा था ॥


कोरे कागज़ पर लिखता था कभी उनकी याद को ।

आज सूनेपन में फिर से उनको क्यों बुला रहा था ॥


उदासी के सवब को कभी वो बेताब होकर पुछा करते थे।

रात के अंधेरे में आखों के पानी को अब क्यों मिटा रहा था॥

4 comments:

Anonymous said...

कभी देखा था तागे बुनने में गांठ नहीं आती थी।

रिश्तों में आयी गांठ को मैं मिटा रहा था ॥


उदासी के सवब को कभी वो बेताब होकर पुछा करते थे।

रात के अंधेरे में आखों के पानी को अब क्यों मिटा रहा था॥

jab ham ateet me jaate hain to panne aansoon se geele, aur syaahee se kaale hote rahte hain...

panno ki jagah to computer aur kalam kee jagah keyboard ne le lee lekin aankhon kaa geelaa honaa ab bhi badastor hai..

saadhuvaad!!

Unknown said...

Rishton ki pahchan etni aasan nahi,
-----------------Janta hai GAUTAM.
Bichri yaadon ka sabab,kyo, duhra raha tha.


- BEHAD KHUBSHOORAT.

शशि "सागर" said...

कभी देखा था तागे बुनने में गांठ नहीं आती थी।

रिश्तों में आयी गांठ को मैं मिटा रहा था ॥


badee hee gudh baat kahee hai, bahut hee sundar

Vikas Kumar said...

bahut sudar.
aisa lagata hi ki kisi ki yaad bahut sata rahi hai.

LinkWithin

Related Posts with Thumbnails