Sunday, September 13, 2015

हिंदी हम कहलाते हैं !














माँ को मम्मी, बापू को डैड, 
नमस्ते भी हो गया है हाय,
अंग्रेेजी की बैशाखी से टुकुड़धुम  चल पाते हैं
हिंदी का स्वांग रचाते हैं, हम हिंदी कहलाते हैं। 

उधार लिए शब्दों से हम सब बातचीत कर पाते हैं 
एक वाक्य में अन्य भाषा के बस पांच शब्द घुसियाते हैं 
हिंदी का ढोंग रचाते हैं, हम हिंदी कहलाते हैं।

दिन, दिवस और पखवाड़े हम उनके लिए मनाते हैं
अस्त हो रहा जिसका 'सूरज', हम उसको दिया दिखाते हैं    
हिंदी का ढोंग रचाते हैं, हम हिंदी कहलाते हैं। 

गूगल हुआ अब माई-बाप, 
यूँ साहित्य में लालित्य होगी अब बीत चुकी बात 
सुनो भईया,
नौकरी पाने को हम अब 'रिज्यूमे' बनवाते हैं
गिने चुने शब्दों से खूब अपनी धौंस जमाते हैं
हिंदी का ढोंग रचाते हैं, हम हिंदी कहलाते हैं। 

सिनेमा जगत भी अब डबिंग की कमाई खाते हैं 
पब्लिक से जब अंगरेजी में वो फटर-फटर बतियाते हैं
हिंदी का ढोंग रचाते हैं, हम हिंदी कहलाते हैं। 

फैलाते हुए आतंक 
हिंदी के ये भुजंग 
का, को, की, में, पे, पर और कहूँ तो यमक 
पर लोगों को कनफुजियाते हैं
हिंदी पर लगाके यूँ  ग्रहण 
रहबर ही अब इसका मसान बनाते हैं 
हिंदी का ढोंग रचाते हैं, हम हिंदी-हिन्द कहलाते हैं। 

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