Friday, April 15, 2011

A tell of two sisters ?


Two sisters who locked themselves in a flat for seven months is an issue of their mental toughness and disease but more than it, it tells a story of development ,globalization of the cities and distortions of the society also.Among the both one was in such a condition that she could not long lasted, just before the starting she took her last breathe.The condition of second one is also not much good she is in ICU.

Going without food doesn't only weaken the body but some part of the body even forgets to work.This is the ultimate reason that the elder sister Anuradha even after reaching the hospital could not survive.First of all the death of his father and than mother,the depression from the death of parents were enough to succumb both the girls one who textile Engineer and the other was accountant had stopped their daily doings.In living one their dog was the lone creature with whom they were related to. Their brother isolated himself doing the marriage and they were just by doing the phones used to get some thing as their meals and later on left it also.

Psychologist define their condition in terms of Chronic Psychosis or psychophrenia but the condition of physical and mental level are very small things.The real question is much bigger that is society, keen and kith in laws , brother and brother in laws, relatives and neighbour or the people of Resident welfare Associations where were these people or are. why they did not tried to know take care of both even the what abouts.

It is very obvious that the class of a people make themselves isolated from the the people who live in depression but why the kin prey themselves that they can not be cured.we are living such a life which come only in the form of two sisters of Noida or the three sister of Kalka ji in 2007. when society will wrap up in this fashion than the selfishness will surely reveal in this format.No one will try to interrupt in the personal lives.Bahal sister's father had died in the road accident and their brother could not really prove to take care after them.

These two talented sisters,competent in their fields brought up in such a worst condition that this is not only the matter to think for their families but also for the entire society.

Monday, February 21, 2011

जिन्दगी !

जिन्दगी !

ज़िन्दगी छोटी ही सही लेकिन
खुशियों के साथ गम का सबब साथ लाती है |


मुस्कुराने की चाहत तो मेरी भी थी
पर उदासी इसे छीन जाती है |

अपने लिए तो सभी जीते हैं
औरों के लिए जीने की तमन्ना ही
जीने की एक आस दे जाती है |

Tuesday, February 8, 2011

काश ऐसा न होता !

हौसले भी थम जाते गर तूफ़ान ना आया होता |
दिन नहीं होते गर शाम ना आया होता ||

काँटों से कोई दामन ना बचाया होता |
गर फूलों से भी जख्म ना खाया होता ||
...
इबादत के अल्फाज़ ना आये होते
गर कोई किसी का दिल दुखाया ना होता ||

ये वक्त की नजाकत है वरना साहिल ना होते
गर खुदा ने सागर की गहराई ना बनाया होता ||


Thursday, February 3, 2011

पत्रकार हो तो टी. वी . पर दिखो

शाम हो चुकी थी, सूरज अपनी रोशनी को धुन्ध मे लपेटे रात की अगवानी में लगा था, एक खटिये पर बैठकर चाय पी रहा था , चाय मे चीनी थोडा ज्यादे था , घर में लाईट नहीं है, छोटे भाई ने अपनी कमाई से एक लालटेन खरीदी है उसी की रोशनी में सब काम होता है | इसलिए शायद मां ने चीनी ज्यादे दे दी होगी |लगता है कि उनकी उम्र अब ज्यादा हो चुकी है और उनकी आँखों की रोशनी भी कम होती जा रही है ,एक लम्बे अरसे बाद घर गया था |कुछ लोगों से मैं मिल आया तो कुछ अभी बांकी थे जो गाँव में ही रहते हैं और पैसे के अभाव में अपनी पढ़ाई छोड़कर अपने काम रोजगार में लग गए थे | अब अच्छा कमाते हैं और खुश भी हैं |

कुछ महीनो पहले नयी नौकरी मिली है , उसके बाद घर का यह पहला दौरा था ! ऐसा इसलिए कह रहहा हूँ क्योकि रोजी -रोटी के चक्कर में तो घर जैसे विदेश हो गया हो | विवेक मेरे उन घनिष्ट मित्रों में से है जिसे लंगुटिया यार कहा जाए तो गलत नहीं होगा |घर जाने पर मेरी कोशिश होती है कि इस बन्दे से जरूर मिला जाए |मैं एक पत्रकार की नौकरी पाकर गया था सो घर वाले खुश थे और सब कुशल क्षेम पूछ रहे थे |

गावों में आज भी नौकरी का मतलब सरकारी नौकरी से ही है , अगर वो नहीं मिला तो आप प्राइवेट नौकरी वाले कहे जाते हैं और आपका भविष्य सुनिश्चित नहीं है | बेटी का बाप भी आपको कम तिलक देना पसंद करेगा बजाय इसके कि कोई सरकारी नौकरी वाला उसे मिल जाए ,वो भले राज्य सरकार के नयी बहाले में बहाल हुआ मास्टर ही क्यों ना हो | वाकई हो भी क्यों ना आखिर सरकारी नौकरी में पेंशन भी तो मिल जाते हैं ना |

मैं ने सोचा क्यों ना खाना खाने से पहले एक आध दोस्तों से मिल ही लूं , सो विवेक की घर की तरफ चल पडा ,गावों में ठंढ तब भी बहुत पड़ रही थी , माँ ने कहा ओढना (चादर ) तो ओढ़ लो तब जाना |उनकी बात को अनसुना करते हुए बस मैं अपनी धुन में चल पडा |

विवेक का घर गॉव के दूरे मोहल्ले में हैं , जैसे ही उसके घर पहुंचा और उसने तपाक से गले लगाया तो मानो जैसे कलेजे को ठंडक पहुँची हो , जाड़े में भी गर्मी का एहसास हो रहा हो |उसने चाय के लिए पूछा लेकिन मैं ने मना कर दिया , उसके हाल चाल पूछने के बाद मै ने भी उसका हाल चाल पूछा और खूब सारी बातें होने लगी | तू तो अब बड़ा आदमी हो गया है........ उसकी एक बात बड़ी ही प्यारी और प्रश्नवाचक चिन्ह के रूप में मेरे मन में अटक गयी |उसने बड़ी ही बेवाकी और सहज होकर पूछा अच्छा एक बात बताओ तुम पत्रकार हो , लेकिन मैं ने यार कभी तुम्हे टी. वी पर नहीं देखा |उसके इस प्रश्न पर मैं थोड़ी देर तू निरुतर रहा फिर उसी के अंदाज़ में कहा कि अभी टी. वी . पर दिखने में कई साल लग जायेंगे |वो इस बात पर ठहाके लगाते हुए हस पडा और कहा यार और मेहनत करो और जल्दी से जल्दी टी. वी. पर आ जाओ |

वाकई उसके इस सवाल को मैं हमेशा याद रखूंगा कि आज भी गावों में पत्रकार का मतलब सिर्फ टी. वी . पर दिखना है ,मेरे एक बड़े भाई साहब ने भी कुछ इसी अंदाज़ में पूछा कि शशि शेखर का तो हिंदुस्तान में इतना बड़ा फोटो भी आता है और लिखता भी बढियां है |तुम भी कुछ वैसा ही करो जिस से कही नाम हो छप सको |मेरे मना करने के बावजूद विवेक की पिलाई चाय में जहां दोस्ती कि मिठास थी वहीं जिन्दगी का एक कड़वा सच भी उसी मिठास में घुला था कि भैया पत्रकार हो तो लोगों को दिखो |

उसके इस सवाल को अपने मन की गठरी में समेटे बस चल पडा |मैं ने उसे पत्रकार के मतलब भी समझाए और टी. वी पर दिखने वालों की मेहनत और चापलूसी का फ़ॉर्मूला भी |वो शायद समझ गया होगा |


Sunday, December 5, 2010

ख्वाब था शायद !

नींद आ जाती मुझे भी, अगर उनकी बाहों का सहारा होता|
बन जाता रेत भी अगर उनका प्यार किनारा होता ||


रातें अब भी उतनी ही खामोशी से रोज आते हैं |
आँखें खुली रह जाती हैं,और हम उन्हें सोच पाते हैं||


उनसे वादा किया था कि अब उन्हें सपनो में भी नहीं लाउंगा|
भावनाओं और जज्बातों के बोल कभी नहीं लिख पाउँगा||


मेरी परछाई ने भी है ,अब मुझसे नाता तोड़ लिया|
जीवन के हर रंग से मैं ने अब अपना मुंह मोड़ लिया ||


LinkWithin

Related Posts with Thumbnails